बावन जिनालय सह सौधशिखरी भव्य -दिव्य जिनप्रासाद में मूलनायक श्री आदिनाथ प्रभु की श्यामविनि श्यामवर्णी एक हाथ बड़ी सुन्दर प्रतिमा प्रतिष्ठित है। वि. सं. १९२० में इस मंदिर का निर्माण श्रेष्ठिवर्य श्री खुमजी गदैय्या की धर्मपत्नी श्रीमती नगिबाई ने कराया था | एक महिला को मंदिर का निर्माण की प्रेरणा कैसे मिली, यह तो जानकारी उपलब्ध नहीं है, मगर कहते है की नगीबाई को एक स्वप्न द्वारा मंदिर बनाने की इच्छा जाग्रत हुई। नगीबाई ने अपने भगीरथ प्रयत्न व मेहनत से गांव के जैन संघ तथा अन्य संघो से भी धन एकत्रित करके मंदिर निर्माण का संकल्प पूरा किया। वि. सं. १९२८ में मूलनायक श्री ऋषभदेव प्रभु की अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई। इसकी अंजनशलाका आ श्री रत्नसागरसूरिजी ने की है। वि. सं. १९५८ में जबकि केवल चौदह देहरियों का निर्माण हुआ था। इस मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया गया। जिन लोंगो ने उस प्रतिष्ठा समारोह को देखा है वे कहते है की भारी संख्या में उस दिन नर - नारी एकत्रित हुए थे। 'उम्मेद अनुभव ' पुस्तक के कवी ने इस प्रसंग पर लिखा है - ' नागिबाई नगर खिमेल - मेलो मिनखाँ रो' प्रतिष्ठा के दिन ६२ बोरी शक्कर का जिमन हुआ। जिमण हुआ। इससे आने वालों भक्तों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। देवकुलिकाओं में विराजमान ५५ प्रतिमाओं को वीर नि. सं. १९३१ , वि. सं. १९६१ मधुकर ( चैत्र ) शु ११ के ( माह सुदि १५ ) के बुधवार को , भट्टारक विजय श्रीमुनिचंद्रसूरीजी के हस्ते प्रतिष्ठित किया गया। १८वीं सदी के यात्री महिमा अपनी रचित तीर्थमाला में , यहां के मंदिर की प्रतिमा संख्या इस प्रकार दर्शाया है - "खिमेल पँतीस प्रतिमा इखड़ी " तत्पश्चचात् वि. सं. १९९९ के मंदिर के प्रवेशद्वार के पास लगे दो शिलालेखों में एक अनुसार , ठाकुर मुकनसिंहजी के राज्य में नागीबाई निर्मित जिन चैत्य में श्री पार्श्वनाथ आदि बिंबों के अंजनशलाका प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजयानंदसूरिजीके शिष्य श्री कमलसूरिजी के पट्ट्धर जैनाचार्य श्री लब्धिसूरीजी आ. ठा. के करकमलो से वीर नि. सं. २४६९ , शाके १८६४ , वि. सं. १९९९ माघ शुक्ल ११ , सोमवार , फरवरी १९४३ को मीन लग्न में संपन्न हुई | प्रवेश द्वार के ऊपर गवाक्ष की देवकुलिका में समवसरण में चौमुखी सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ जिनबिंबों की , अंजनशलाका प्रतिष्ठा वीर नि. सं. २४९३ , वि. सं. २०२४ , वैशाख शुक्ल १० , सोमवार को , शासन सम्राट नेमिसुरिजी पट्ट परंपरा में आ. श्री दक्षसूरिजी शिष्य आ. श्री सुशीलसुरिजी आ. ठा. की निश्रा में संपन्न हुई। प्रवेश द्वार के आगे छत्री में हाथी पर मरुदेवा माता के साथ हाथी की सूंड के पास मंदिर निर्मात्री नागीबाई की प्रतिमा स्थापित है। भमती में कलात्मक चक्रेश्वरी माता व सरस्वती माता की आकर्षक प्रतिमाएं प्रतिष्ठित है। इन्ही के पास प्राचीन विशेष फणाधारी व जटाधारी पाश्वर्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। पीछे चरण युगल स्थापित है। विशाल दो हाथियों से जिनालय सुशोभित है। इसे केशरियाजी का मंदिर भी कहते है। मनजी रघाजी गोलेच्छा पहले वहीवटदार थे।नागिबाई व बावन जिनालय : श्रेष्ठिवर्य श्री खुमजी गदैय्या की धर्मपत्नी श्रीमती नागिबाई द्वारा १५० वर्ष पूर्व वि. सं. १९२० में अपने भगीरथ प्रयास से मंदिर का निर्माण करवाना अपने आप में अनोखी घटना है। एक महिला द्वारा उस ज़माने में चंदा इकट्ठा करने हेतु बम्बई जाना और बम्बई , बड़ोदा एवं सेंट्रल रेलवे के तत्कालीन अंग्रेज मैनेजर ने मिलना आश्चर्यजनक लगता है। आप १२५ वर्ष तक जीवित रहीं और खिमेल में नाम कर गई। नागिबाई के समय गाजोजी इस मंदिर के प्रथम पुजारी हुए और वे १२५ वर्ष तक जिए। इन्ही की ८ पीढ़ियां यहां पुजारी हुई। गाजोजी के बाद दलाजी हुए और १०० वर्ष तक जिए। उसके बाद कश्मेजी, पूर्वाजी व तेजाजी पुजारी हुए।
बावन जिनालय मंदिर के प्रांगण में बायीं तरफ श्रेष्ठिवर्य श्री निहालचंदजी दलीचंदजी सुंदेशा मेहता द्वारा भ. महावीर की २५वीं निर्वाण शताब्दी की याद में प्रतिमा निर्माण करवाके वि. सं. २०३२ ( वीर नि. सं. २५०२ ) फाल्गुन शुक्ल 2, बुधवार दि. ३ मार्च १९७६ को आ. श्री सुशीलसूरिजी के हस्ते प्रतिष्ठा करवाके श्री संघ खिमेल को अर्पित किया।
गांव के माध्य पेढ़ी के पास उपाश्रय के सामने व प्राचिन शांतिनाथजी मंदिर के पहले श्रीमती हुलसीबाई वालचंदजी खिमावत परिवार के पर्यावरण प्रेमी गोड़वाड़रत्न स्व. किशोरजी खिमावत ने गुरुभक्ति का परिचय देते हुए उच्चतम श्वेत पाषाण , आबू व रणकपुर जैसी कोरणी से युक्त त्रिशिखरी कलात्मक जिनप्रासाद में वि. सं.२०६८ माघ शु. १४ सोमवार, दि. ६.२.२०१२ को अपने आराध्य गुरु राष्ट्रसंत गच्छाधिपति श्री जयंत सेन सूरी स्वरजी आ. ठा. के वरद हस्ते ऐतिहासिक प्रतिष्ठा महोत्सव में कसौटी पत्थर से निर्मित सुन्दर परिकार से शोभित , मु श्री मुनिसुव्रतस्वामी व अनेक जिनबिंब , गुरु गौतम स्वामी तथा श्रीमद् विजय राजेंद्रसूरीजी की आकर्षक गुरु प्रतिमा को प्रतिष्ठा किया। गोडवाड़ प्रदेश की यह यादगार प्रतिष्ठा थी। इसम गांवकी ३६ कौम के साथ तेड़ा बावनी का महोत्सव हुआ। जो गोडवाड़ क्षेत्र में एक अनूठा महोत्सव था। स्व. किशोरजी खिमावत : आपके ' मानव सेवा अभियान ' अंतर्गत किये हुए अनेक लोकोपयोगी कार्यो के लिए राजस्थान राज्य सरकार ने आपको २००४ ,२००५ एवं २०१० में राज्यपाल के करकमलो से सम्मानित किया गया है। आपकी दानशूरता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने २००७ में आपको ' भामाशा ' की उपाधि से नवाजा है। आप मारवाड़ रत्न , धरती पुत्र , मारवाड़ चेतना प्रतिभा , गोडवाड़ रत्न , जिनशासन रत्न , जैन रत्न, गोडवाड़ के गौरव , इत्यादि उपाधियों के धनी है। वक्ष संवर्धक एवं संरक्षक , जल संवर्धक, पर्यावरणप्रेमी , जान -जान के आस्था के केंद्र , ३६ कौम प्रेमी , परम गुरुभक्त , आदि अनेक उपाधियों से आप अलंकृत है।
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